आरोग्य का विज्ञान-आयुर्वेद एवं मर्म चिकित्सा

प्रो. (डॉ.) सुनील कुमार जोशी….

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी आरोग्य के आधीन है और आरोग्य का विज्ञान’ आयुर्वेद’ कहलाता है। अष्टांग आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपांग, चारों वेदों का सार तथा पंचमवेद भी कहा गया है। वेदों से निसुत आयुर्विज्ञान की भाषा वेदवाणी और देववाणी संस्कृत है। पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश), त्रिदोष (वात, पित्त और कफ), त्रिसूत्र (हेतु, लिंग और औषध) पर आधारित आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक है। आयुषोवेदः अर्थात् आयु (जन्म से मृत्यु पर्यन्त) का ज्ञान कराने वाला विज्ञान आयुर्वेद है, परन्तु इससे पहले भी अनादि काल से अनके चिकित्सा पद्धतियाँ प्रचलित थी। वैदिक वांग्मय में स्वास्थ्य संरक्षण और रोग प्रतिरक्षण की विभिन्न पद्धतियों से सम्बन्धित संदर्भ यत्र-तत्र मिलते हैं।

मर्म चिकित्सा हजारों साल पुरानी वैदिक चिकित्सा पद्यति है। इसको आयुर्वेद से प्राचीन पद्धति कहा जाता है। औषधियों के गुण धर्म और कल्पना (preparation) का ज्ञान होने से पूर्ण स्वस्थ रहने के एक मात्र उपाय के रूप में यह ज्ञान जनसामान्य को ज्ञात था। उस समय स्वास्थ्य संवर्धन एवं रोगों की चिकित्सा के लिए मर्म चिकित्सा का प्रयोग किया जाता था। अत्यंत प्रभावशाली होने तथा अज्ञानतावश की गई मर्म चिकित्सा के घातक प्रभाव होने से इस पद्धति का स्थान आयुर्वेद औषधि चिकित्सा ने ले लिया तथा यह पद्धति मर्म चिकित्साविदों द्वारा गुप्तविद्या के रुप में परम्परागत रूप से सिखाई जाने लगी। व्यापक प्रचार एवं शिक्षण के अभाव में यह विज्ञान कालान्तर में लुप्त प्रायः हो गया।

मर्म विज्ञान सार्वभौमिक अस्तित्ववाली चिकित्सा पद्धति है। ईश्वर ने वह समस्त वस्तुयें हमें उपलब्ध कराई हैं, जो हमारे अस्तित्व के लिए अनिवार्य है, तथा मनुष्य को अनेक लौकिक एवं पारलौकिक शक्तियों से भी सुसम्पन्न किया है। स्व-रोग निवारण क्षमता उनमें से एक है जिसके द्वारा हम अपने को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रख सकते हैं। ईश्वर प्रदत्त स्व-रोग निवारण क्षमता जो मनुष्य शरीर में अन्तनिर्हित है। इसमें मनुष्य का व्यक्तिगत योगदान नहीं है। यह मनुष्य में ईश्वरीय शक्तियों का प्रतिरूप मात्र है। इस संदर्भ में यह जानना भी आवश्यक है कि ईश्वर का पुत्र होने के नाते मनुष्य में समस्त ईश्वरीय गुणों का समावेश है। भारतवर्ष के हजारों वर्ष के इतिहास में वैदिक काल से अद्यतन भारतीय समाज ने यह सिद्ध कर दिया है कि केवल मानवीय मूल्यों पर आधारित वैदिक पद्धति ही सर्वउपयोगी चिकित्सा प्रणाली के रूप में हमारे देश में प्रचलित है। वैदिक चिकित्सा पद्धतियों के संदर्भ में मर्म चिकित्सा अत्यन्त मानवीय, निःशुल्क, सर्व सुलभ और व्यापक रूप से सर्व सामान्य के लिए उपयोगी है।

मर्म तंत्र (107 मर्म स्थान) संसार के सभी मनुष्यों में समान रूप से नैसर्गिक उपादान के रूप में स्थित है। इसको समुचित विधि से उपचारित कर प्रत्येक व्यक्ति इसके प्रभावों से लाभान्वित हो सकता है। इतनी सहज, सरल और आसानी से उपलब्ध होने वाला यह विज्ञान अत्यन्त सूक्ष्म और महत्वपूर्ण है। इस चिकित्सा के माध्यम से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य संवर्धन और तजन्य रोग निवारण सम्भव है। हम यह कह सकते हैं कि मर्म विज्ञान का सर्वांगीण ज्ञान प्राप्त करना मनुष्य मात्र का जन्म सिद्ध अधिकार है। इस लिहाज से प्रत्येक मनुष्य को मर्म चिकित्सा के माध्यम से स्वास्थ्य संरक्षण का मूलभूत अधिकार भी प्राप्त है।।

वर्तमान समय में नैदानिक उपकरणों, प्रयोगशालीय परीक्षणों और आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में अरबों डालर्स का अपव्यय किया जाता है परन्तु चिकित्सा के दृष्टिकोण से दखेंगे तो परिणाम अत्यन्त निराश करने वाले और सीमित हैं। जबकि पूरा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान, मंहगा होने और दुष्परिणाम युक्त होने के कारण जनसामान्य की पहुँच से बाहर है। इसलिए यह विचारणीय है कि मर्म चिकित्सा विज्ञान के रूप में एक विकल्प सर्वसुलभ कराया जाय। चिकित्सा की अनछुई और अप्रचलित विधा होने के कारण इसके ज्ञान के प्रचार और प्रसार के लिए अधिक से अधिक मर्म विज्ञान में दक्ष/कुशल लोगों की आवश्यकता है। अध्ययन, अध्यापन, प्रशिक्षण और विश्वसनीयता निर्माण का महति कार्य इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

पूर्व कुलपति,

उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, देहरादून

गुणों की खान दूर्वा घास

पंजाब स्थित बाबे के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के डॉक्टर प्रमोद आनंद तिवारी (एमडी) के अनुसार, “आयुर्वेद में दूब या दूर्वा को औषधि और गुणों की खान कहा जाता है। पेट के रोगों, मानसिक शांति के लिए यह फायदेमंद है। दूब के रस को पीने से एनीमिया की समस्या ठीक हो सकती है। यह हीमोग्लोबिन लेवल को भी बढ़ाता है।” गुणों की खान कही जाने वाली दूब में कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस के साथ फाइबर, प्रोटीन और पोटेशियम भी पाए जाता है।

आयुर्वेदाचार्य ने बताया, “दूब या दूर्वा घास पार्क में मिल जाती है। सुबह-शाम नंगे पांव इस हरी घास पर चलने से माइग्रेन का दर्द दूर हो सकता है। इससे ब्लड प्रेशर को कंट्रोल हो सकता है और आंखों की रोशनी को बेहतर करने में भी फायदेमंद है। दूर्वा घास हार्ट के लिए भी बेहद फायदेमंद है।”

आयुर्वेदाचार्य ने बताया कि दूब का सेवन कैसे करना चाहिए। उन्होंने बताया, “ताजी दूर्वा घास को पीसकर उसके रस को पीने से कई समस्याएं कोसों दूर भाग जाती हैं। दूब के सेवन से इम्यूनिटी न केवल मजबूत होती है, बल्कि इससे महिलाओं को होने वाले मासिक धर्म के दर्द में भी राहत मिलती है और कब्ज की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती है।”

उन्होंने बताया, “आपको माइग्रेन या सिरदर्द की शिकायत रहती है तो सुबह-शाम नंगे पांव टहलने के साथ ही दूब के जूस के सेवन करने से भी लाभ मिलता है। शरीर में क्रैम्प्स और दर्द हो या दांतों में दर्द हो, मसूड़ों से खून आ रहा हो, मुंह में छाले हो गए हों तो शहद या पी के साथ दूब के रस को मिलाकर लेने से भी राहत मिल सकती है।

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